बुधवार, 19 जून 2024

क्या है नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास ? आखिर कितनी पुस्तके इसमें जल गई थी और वो कौन था जिसने इसमें आक्रमण किया था?

 शानदार नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः प्राप्त करने में 831 साल लग गए, जिसका उद्घाटन 19 जून को प्रधानमंत्री मोदी ने किया है। यह प्राचीन विश्वविद्यालय सदियों से खंडहर में पड़ा हुआ था।


खिलजी की आगजनी के बाद, ऐसा कहा जाता है कि नालंदा तीन महीने से अधिक समय तक जलता रहा, जिससे लगभग नौ मिलियन पुस्तकें और पांडुलिपियाँ नष्ट हो गईं।



क्या है नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास की घटना?



 है ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री करने जा रहे हैं। यह वास्तुकला का एक भयावह उदाहरण है जिसकी प्रेरणा बिहार के खेतों में सतत जलने नाली ईंट की भट्ठियों से ली गई है। लाल रंग, चौड़ा आधार, तिरछा होता ऊर्ध्वगामी छोर। बाकी धुआँ हम बिहारियों के हर जगह से इसे देख कर निकल ही रहा है। 

दूसरे छायाचित्र में एक अर्धगोलाकार संरचना है, जिसका ऊपर से खतना कर दिया गया है। इसमें जो काली वर्गाकार खिड़कियाँ हैं, वह किसी चिड़ियाँ बेचने वाले की हवादार टोकरी से प्रेरित लगते हैं जो बिहार के गाँवों में आपको पहले दिख जाया करते थे। 



तीसरे छायाचित्र में माचिस की खुली और बंद डिब्बियाँ हैं जिसमें हमारा बचपन बालू भर कर, धागे से खींच कर सड़कों पर दौड़ते हुए डिलिवर करने में बीता है। बिहार के रेत माफिया को दी गई यह श्रद्धांजलि नमन योग्य है।


चौथे छायाचित्र से बिहार के कच्ची शराब की भट्ठियों का स्मरण हो उठता है। वही मटमैला रंग और धुएँ निकालने वाली खिड़कियाँ। सीढ़ियाँ तो ऐसे बनाई गई हैं जैसे मिस्र का पिरामिड लाते समय तीव्र वायु वेग में ऊपर से ढह गया हो। बिहार में हवा से ढहते पुल की स्मृति हमारे हृदय में शेष है। 


कुल मिला कर ऐसी वास्तुकला जो बिहार के गाँव-घर की स्मृति का स्थूल चिह्न प्रतीत होता है। ऐसी भयानकता बहुत कम देखने को मिलती है। प्रधानमंत्री मोदी जैसे सँवरने वाले लोग, वहाँ स्वयं को फैशनेबली आउट ऑफ प्लेस फील करेंगे। 


अकादमिक बर्बादी तो अमर्त्य सेन फैला कर गया ही है, ये चक्षुओं को चुभने वाली शैली हमें दशकों तक रुलाती रहेगी। अभी भी पुराने नालंदा विश्वविद्यालय का खंडहर इतना सुंदर है कि वहाँ जाने के पश्चात आपको यह बिहार पर रोने को विवश कर देगा।
कभी उस 'खंडहर' को साक्षात देखने का मौका मिले तो पता चलता है की असल में उन मोती दिवारे आज भी बहुत कुछ कहती है। आचार्य, प्रधानाचार्यों का कक्ष, सम्मेलन के लिए अलग से बड़ा हाल, जल की निकासी की पूरी व्यवस्था। सब कुछ था उस मोटी दीवारों के बीच।


आपको यह जानकारी कैसी लगी अपनी राय जरूर दे धन्यवाद । जय हिन्द|



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